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Tuesday, January 24, 2012

आज के इस कॉलम में भारत के गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर जानी मानी शिक्षाविद और लेखिका नेहा सिंह भारतीय मीडिया की दशा और दिशा पर अपना चिंतन पेश कर रही हैं !लेखिका वर्तमान में राजनीति शास्त्र की व्याख्याता हैं ! ***** संपादक



भारत निर्मा में भारती पत्रिकारिता 

हमारे संविधान में वर्णित प्रस्तावना के मूल तत्त्व, मूल अधिकार, मूल कर्त्तव्य, राज्य के नीति निदेशक तत्त्व और संवैधानिक संस्थाएं इस बात का द्योतक हैं की ये संविधान भारतीयों  का और भारत की परिस्थितियों का प्रतिनिधित्व करता है I 
                                          2 साल, 11 महीने , 18 दिन में भारत की संविधान सभा ने संविधान का निर्माण कियाI  पर वास्तव में इस भावी संविधान की पृष्ठभूमि तो  हमारे स्वंत्रता संघर्ष  के दौरान ही तैयार हो गयी थी और इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई भारतीय पत्रिकारिता ने 
                        ब्रिटिश राज के अधीन जब हम  अपनी दुर्दशा को अपनी नियति मान बैठे थे, तब भारतीय अखबारों ने ही औपनिवेशिक साम्राज्यवादी विचारधारा को हमारे सामने रखा I  हमें बताया कि हमारी गरीबी के लिए हमारी नियति नहीं बल्कि धन का दोहन , पूंजी निकास जिम्मेदार है I  भारतीय प्रेस ने ही भारत की जनता को राजनीतिक शिक्षा दी, अपने अधिकारों और सरकार के उत्तरदायित्वों का बोध कराया I  



                                              अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, जो भारतीय राष्ट्रीयता  की वाहक बनी,  जनता की मांगों को सरकार तक पहुँचाने और उनके लिए संघर्ष करने का माध्यम बनी, उस कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में करीब एक तिहाई संख्या पत्रकारों की थी I  आलम यह था कि हर राष्ट्रवादी आन्दोलनकारी  किसी न किसी रूप से अख़बारों से  जुड़ा हुआ था I   और प्रेस भारत के बौद्धिक  आन्दोलन का नेतृत्व कर रही थी I  
                           अगस्त १९४७, भारत की स्वतंत्रता के उपरांत भारत की पत्रिकारिता को खुला वातावरण मिला I   सूचना एवम जनसंचार की क्रांति से सूचनाओं के आदान प्रदान में तीव्रता आ गयी I   मीडिया लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण स्तम्भ बनकर उभरा I    इस दौर में मीडिया द्वारा भारत के विकास तथा राष्ट्रीय जीवन को दिशा देने के साथ ही इस प्रक्रिया में आने वाली विसंगतियों पर भी प्रहार किया गया I  आपातकाल के समय जब मीडिया पर अंकुश लगाने की कोशिशें की गयीं तो भारत के जनमानस ने इसका खुला विरोध किया I    
                          १९९० के दशक में भूमंडलीयकरण होने से मीडिया के आयामों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई I  सैटलाइट चेनलों की शुरुआत तथा मीडिया के क्षेत्र  में निजी पूँजी के प्रवेश के कारण खबरिया चेनलों की बाढ़  आ गयी I  चेनलों की आपसी प्रतिस्पर्धा  के कारण धीरे धीरे मीडिया पर व्यवसायिकता हावी होने लगी I  और नकारात्मक पक्ष मजबूत होने लगे I  पत्रिकारिता क्षेत्र राष्ट्र की सेवा के लिए नहीं बल्कि रोजगार के बढ़ते अवसरों के लिए जाना जाने लगा I  
                              ऐसे में मीडिया को  फिर से अपने अतीत की ओर  झांकना चाहिए I  उन्ही आदर्शों  और प्रतिवद्धताओं को अंगीकार करना चाहिए I  हर मुद्दे का गहराई से, बारीकी से तथा बड़ी जिम्मेदारी के साथ विश्लेषण करना चाहिए , ताकि भारतीय पत्रिकारिता भारतीय समाज का नेतृत्व कर सके  और भारत निर्माण में एक सकारात्मक भूमिका निभा सके I  
धन्यवाद ................

*****नेहा सिंह 

5 comments:

Anonymous said...

वाकई बिटिया इंडियन प्रेस सिस्टम ने हमें लोकतंत्र की बारीकियों को समझाया है
दुनिया में हमारा नाम इस बावत बहुत उंचा है
ज्ञान वर्धक लेख के लिए
धन्यवाद
श्यामकांत

Anonymous said...

bahut khub bitiya...
hirdesh

Pushpendra Singh "Pushp" said...

welldone.......... bitiya
great post of indian media

congratulation......and welcome on blog .

Anonymous said...

sach kaha didi aapne 1885-1947 tak bhartiiy itihas me patrkaarita kii aham bhoomika rahii hai, bahut achhii post hai,, kram banae rakhen ,


****DILIP

Anonymous said...

मुद्दत बाद नेहा की पोस्ट आयी.... बहुत सारगर्भित लेख.....!!!!!

PK