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Saturday, June 16, 2012

राग दरबार vol-11


                मुझे दूर कहीं तू ले चल मन


मुझे दूर कहीं तू ले चल मन
जहाँ मानवता का त्रास न हो
किसी राम को फिर वनवास न हो
हो दिव्य जहाँ का वातावरण
मुझे दूर कहीं तू ले चल मन |

हर दिल में प्यार की ज्योति जले
भंवरे मुस्काएं फूल खिले
हर आंगन में किलकारी हो
महफूज जहाँ  की नारी हो
जहाँ आखें हों दिल दर्पण
मुझे दूर कहीं तू ले चल मन |

जहाँ समता का अधिकार मिले
हर दिल में प्यार ही प्यार पले
फूलों से सजी हर डाली हो
कोयल कूके मतवाली हो
पपीहा छेड़े मीठी सरगम
मुझे दूर कहीं तू ले चल मन |

छल दम्भ का कोई नाम न हो
बस सच के सिवा कोई काम न हो
जहाँ जाति धर्म का बैर न हो
कोई अपना कोई गैर न हो
दिल निर्मल हो मन अति पावन
मुझे दूर कहीं तू ले चल मन |


                                                पुष्पेन्द्र “पुष्प”

1 comment:

PANKAJ K. SINGH said...

bhai behad laziz geet hai ... dhun bana raha hoon

***** PANKAJ K. SINGH