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Tuesday, February 4, 2014

अमेरिका  की वर्चस्वतावादी नीति ; देवयानी मामला                                                          


              पिछले कुछ दिनों से भारतीय  राजनयिक देवयानी खेबरागड़े का प्रकरण समाचार पत्रों के मुख्य अंश बने रहे, और हों भी क्यों न यह मामला भारत के सम्प्रभुता पर प्रसन्चिन्ह लगाता है ,
      विवाद कुछ इस प्रकार था, 
कि भारतीय राजनयिक देवयानी खेबरागड़े एक घरेलू नौकरानी को लेकर अमेरिका गई थी वहाँ  पर उसे वेतन  भारतीय परिस्थितीयों के अनुसार दिया जा रहा था, जो कि अमेरिका में लागू न्यूनतम वेतन से कम था, नौकरानी ने अपनी स्थति कि अनुसार सप्ताह के अंत में किसी अन्य के यहाँ काम करके पैसा कमाने की इच्छा खेबरागड़े से व्यक्त की, चूँकि नौकरानी को वीजा खेबरागड़े के घर में काम करने  के लिए ही मिला था इसलिए  खेबरागड़े ने इससे साफ़ इंकार कर दिया, इसी बीच वह नौकरी छोड़कर चली गई, खेबरागड़े ने हालांकि पुलिस में रपट भी लिखाई, लेकिन अमेरिकी पुलिस द्वारा इस पर कोई कार्यवाही नहीं कि गई, बाद में नौकरानी ने खेबरागड़े के खिलाफ न्यूनतम मजदूरी से कम वेतन देने के सम्बन्ध में आरोप लगा दिया, जिससे खेबरगड़ेको हिरासत में ले लिया गया, लेकिन हिरासत में लेने के बाद खेबरागड़े की निर्वस्त्र तलाशी, एवं जघन्य मामलों में शामिल अपराधीयों के साथ उनको वैरक में बंद रखा गया, यही पहलू भारत और अमेरिका के सम्बन्धों में आए दरार को प्रदर्शित  है, 
                                  ऐसा नहीं है कि अमेरिका द्वारा यह विवाद पहली बार सामने आया है, इससे पहले २००२,०३ में भारत के रक्षा मंत्री जॉर्जफर्नांडीस, एपीजे अब्दुल कलाम, रामदेव, व् अन्य फिल्मी हस्तीयां भी अमेरिका की इस वर्वरता का शिकार हो चुकी है, अमेरिका भारत को एक banana रिपब्लिक का दर्ज देता है, वह दक्षिण एशिया में अपने वर्चस्व को बनाए रखने के लिए तथा चीन की उभरती अर्थव्यवस्था  के साथ दक्षिण एशिया में उसके बढ़ते वर्चस्व को प्रति संतुलित करने के लिए भारत को रणनीतिक रूप में इस्तेमाल करता है,यह   अमेरिका है जो किसी भी देश में व्याप्त भ्रष्टाचार, मानवाधिकार,एवं आंतरिक अव्यवस्थाओं का हवाला देकर अपनी रिपोर्टों के माध्यम से उसकी स्थिती  को सुद्रण करने कीसलाह देता है,आज  वैश्वीकरण के दौर  में प्रत्येक देश की परस्थितीयां तेजी से बदल रही है, पहले जहाँ मिस्स्र अपनी आंतरिक समस्याओं से जूझ रहा था आज वह अपने मजबूत संबिधान की बुनियाद पर खड़ा है, नेपाल में जहाँ कभी राजतंत्र हुआ करता था, आज वहाँ पूर्णतः लोकतंत्र प्रभावी हो गया है आज विकासशील देशों के बदले हुए स्वरूप को कम नही आँका जा सकता, जो राष्ट्र कभी बीमारू राष्ट्र के नाम से जाने जाते थे वे आज विकासशील राष्ट्र की कतार में खड़े है,  इसलिए अमेरिका को अब विकासशील राष्ट्रों के प्रति banana रिपब्लिक का  दृष्टिकोण त्यागना होगा , और अपनी वर्चस्ववादी नीत को कम कर सम्रध एवं उदार व्यवहार अपनाना होगा,

 कुछ दिनों पहले अमेरिका nsa की खूफिया एजेंसी में कार्यरत एडवर्ड स्नोडेन नामक व्यक्ति ने कुछ अहम् खुलासे किये, इससे साफ़ जाहिर है, कि अमेरिका अपनी वर्चस्वता को सिद्ध करता रहता है, स्नोडेन का कहना था कि अमेरिका अपनी खूफिया एजेंसी प्रिज्म की  निगरानी के दायरे में आने बाले लोगो में भारतीय पांचवे नंबर पर आते है, और आज भारत ही नहीं अमेरिका अपने जासूसी कार्क्रम प्रिज्म के माध्यम से संसार से  ५अरब इंटरनेट एड्रेस पर लगातार नजर रखता है, वहीं इस विवाद का दूसरा पहलू  भारत को अपनी नीतियों के कारण कटघरे में खड़ा करता है     ,यहाँ मेरा मानना है कि , 
                         कि इससे पहले भी भारतीय राजनयिकों (उपर्लिखित) व्  फिल्मी हस्तीयों को रोकने के संबंद्ध में भारत ने कोई प्रतिक्रीया व्यक्त नही की, इसके आलावा कुछ दिन  पहले अमेरिका के निगरानी करने के सम्बन्ध  में भारतीय विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद का कमजोर सा वयान था कि'' भारत ऎसी कोई टिप्पड़ी तक नही करेगा जिससे अमेरिका को नाराजगी हो, इसके आलावा स्नोडेन ने भारत में शरण मांगने पर आवेदन किया तो भारत ने आवेदन ख़ारिज करने में कुछ ज्यादा ही तेजी दिखाई, ऐसे कुछ अन्य विवाद RAW के वरिष्ठ अधिकारी को सीआईए ने अपना गोपनीय एजेंट बना रखा था,ऐसे कई मामले है जो जनता के समक्ष लाए ही नहीं गए, और उनको दवा दिया गया, और जब आज देवयानी मामला सामने आया तो संप्रग सरकार ने संसदीय चुनाव को ध्यान में रखते हुए, जैसा रुख अपनाया है वैसा भारतीयों में कभी देखने को नहीं मिला, जिससे साफ़ जाहिर है कि दिवपक्षीय सम्बन्धों में राजनीति के हस्तक्षेप को अनदेखा नही किया जा सकता,
                           परिणामतः- भारत को आज अपनी अर्थव्यवस्था में सुधार लाने के  लिए विकसित राष्ट्रों के  सहयोग की जरूरत है, वहीं अमेरिका को अपने वर्चस्व वादी रवैये को छोड़ अपनी जनता में व्याप्त अशंतोस ( वढ़ती वेरोजगारी, घरेलू बाजार में चीनी उत्पादों कि बढ़ती संख्या,सिकुड़ती अर्थव्यवस्था ) को ध्यान में रखते हुए विकासशील देशों के प्रति उदार रवैया अपनाना चाहीये, जिससे वैश्विक स्तर पर विकास को संभव किया जा सके,                                               

                                                                                             ****** dilip kumar 

7 comments:

Anonymous said...
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Anonymous said...

लेख पढ़ने के बाद में डिसाइड नहीं कर पा रहा हूँ कि यह लिखा क्यों गया.किसके लिए लिखा गया.इसमें ऐसा नया क्या था जो किसी को मालूम नहीं था.

SINGHSADAN said...

kitne bhi tu karle sitam, has has ke sahenge ham, o sanam teri kasam


naasmiite singh

Anonymous said...



जा मैटर हमाये तीर आन देओ , सरकार नाइ निपटाए पय्ये !

***** सूबेदार कठेरिया ( पिंचर वाले ) , बिटूकिया के नगरा

Anonymous said...


हमाये गाम की बिटिया है जा दिबयानी ,, जाके बाप के धियां एक टेम कछू नीं हतो !

SINGHSADAN said...

राबुल हांडी के द्वारा

भैया ये जो विकसित देश है भैया, इनकी चाय मत पीना भैया,
इनकी चाय पीने से पेट में ऐंठन, मरोर, और लेट्रिन टाइट हो जाती है भैया,
आप से निवेदन है, इससे जूझें न, जल्द ही लें भैया ,

हमदर्द का शिंकारा,

Anonymous said...



meri mano ,meri mano , meri mano ,

meri mano , meri mano , mere bhaiya

***** RATHORE RADIOS